वेणुनाद है ब्रह्म साक्षात्कार का ब्रह्मनाद : स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती
करहाँ, मऊ। सदर तहसील के बकवल स्थित आम्रपाली सभागार में गीता जयंती महोत्सव पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा छठवें दिन परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी ज्ञानानन्द सरस्वतीजी महाराज ने परमात्मा श्रीकृष्ण चंद्र के वेणुनाद की कथा सुनाई। बताया कि वेणुनाद ब्रह्म साक्षात्कार कराने वाला ब्रह्मनाद है। जो सभी साधक, जीवात्माओं के चित्त-मन-प्राण और वृत्ति का आकर्षण करके भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के सन्मुख ला देता है वह भगवान की वेणुनाद की लीला है।
स्वामी जी ने कहा कि किसी भी शरीर में जिस किसी जीवात्मा ने श्रीकृष्ण मिलन के लिए साधना किया था, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के वेणुनाद ने उन सभी शरीरधारी जीवात्माओं का आकर्षण करके भगवान के सन्मुख ला दिया एवं उन्हें भगवत्प्राप्ति व ब्रह्म साक्षात्कार का परम सुख सौभाग्य प्रदान कर दिया। कहा कि अधकुचले कुशाग्र भाग को मुख में दबाये शान्त मृगशावक, अपने नेत्रकमल को अर्पित करती हुई मृग पत्नियां, गोमाताओं के थन से दूध पीना छोड़कर दुग्ध घूंट निगले बिना, अश्रु अर्घ्य बहाते गोवत्स अपने कानों को ऊपर उठाये, वेणुध्वनि श्रवण कर रही स्तब्ध गौ माताएं, कमलपराग-रसपान छोड़कर वैजयन्ती माल पर मड़राते भ्रमर वृन्द, जिसकी धारा ही वेणुनाद श्रवण में निमग्न व अवरुद्ध हो गई हो ऐसी यमुना जी, वृक्ष शाखाओं पर बैठे ऋषि-मुनियों की भाँति अपने-अपने नेत्र मूंदकर ध्याननिष्ठ पक्षी गण, श्रीकृष्ण दर्शनाकांक्षा रोम-रोम में लिए धावमान व्रज वनिताएं एक साथ वेणुनाद रसमाधुरी पान करते ही स्वयं को कृष्णार्पित कर दिया। जिनकी देह जनित अहम् ग्रन्थि सद्य: निर्मूल हो गई है उनके चतुर्दिक अन्तर्बाह्य केवल कृष्ण ही कृष्ण रह गया। वेणुध्वनि.. रस-रास-माधुरी-विलास ध्वनित हो उठा सर्वं कृष्णमयं जगत। इस साधनात्मक वेणुध्वनि को भारतीय ऋषि मेधा ने सर्वभूत मनोहरम् कहा। स्वामी जी ने बताया कि कृष्णदर्शन लालसा जैसे सत्य संकल्प का ऐसा अमोघ प्रताप है कि साधक किसी शरीर में जब साधना प्रारम्भ करता है तो सत्यात्मक परमात्मा स्वयं अपनी प्राप्ति का विधान बना देता है। साधना यदि कुछ शेष भी रह गई हो तो प्राणिमात्र का ईश्वर उसे स्वयं पूर्ण कर देता है। विषपान कराने वाली पूतना राक्षसी को भी जिन्होंने जननी की गति प्रदान कर दिया हो ऐसा कौन दयालु है जिसकी शरण ग्रहण किया जाय? कं वा दयालुं शरणं व्रजेम्।
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