कृष्ण से बड़ा दयालु कौन है-? कं वा दयालुं शरणं व्रजेम्-? : स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती
करहाँ, मऊ। जनपद मुख्यालय के बकवल में गीता जयंती महोत्सव पर चल रही भागवत कथा के छठवें दिन स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने कहा कि निखिल ब्रह्मांड में कृष्ण से बड़ा दयालु कोई नहीं है। विषपान कराने वाली पूतना राक्षसी को भी जिन्होंने जननी की गति प्रदान कर दिया हो ऐसा कौन दयालु है, जिसकी शरण ग्रहण किया जाय? कं वा दयालुं शरणं व्रजेम्?
स्वामी जी ने परमात्मा श्रीकृष्णचन्द के वेणुनाद को ब्रह्म साक्षात्कार कराने वाला ब्रह्मनाद बताया। जो सभी साधक, जीवात्माओं के चित्त-मन-प्राण और वृत्ति का आकर्षण करके भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के सन्मुख ला देता है वही लीला भगवान की वेणुनाद लीला है। कहा कि किसी भी शरीर में जिस किसी जीवात्मा ने श्रीकृष्ण मिलन के लिए साधना किया था, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के वेणुनाद ने उन सभी शरीरधारी जीवात्माओं का आकर्षण करके भगवान के सन्मुख ला दिया एवं उन्हें भगवत्प्राप्ति व ब्रह्म साक्षात्कार का परम सुख सौभाग्य प्रदान कर दिया। इस साधनात्मक वेणुध्वनि को भारतीय ऋषि मेधा ने सर्वभूत मनोहरम् कहा। कृष्णदर्शन लालसा जैसे सत्य संकल्प का ऐसा अमोघ प्रताप है कि साधक किसी शरीर में जब साधना प्रारम्भ करता है तो सत्यात्मक परमात्मा स्वयं अपनी प्राप्ति का विधान बना देता है। साधना यदि कुछ शेष भी रह गई हो तो प्राणिमात्र को ईश्वर उसे स्वयं पूर्ण कर देता है।
श्रीमद्भागवत सप्ताह यज्ञ के पूर्वाह्न सत्र में यज्ञाचार्य पंडित धनंजय, अभिषेक, गौरव व शुभम ने मुख्य यजमान उर्मिला सिंह से वेदी पूजन व हवन कराया। भागवत परायण के मध्य श्रद्धालुओं ने यज्ञ मंडप की फेरी लगाई। अपराह्न सत्र में कथा श्रवण आरती, भोग प्रसाद का क्रम चला। इस अवसर पर पंडित हरिओम शरण, संगीता देवी, कालिका सिंह, संध्या सिंह, अशीत कुमार पाठक, निर्मला देवी, धीरेंद्र सिंह, विमल मिश्र, महेशचंद्र, अदिति, आशीष, प्रियव्रत, विनीत पांडेय आदि उपस्थित रहे।
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