विंध्य क्षेत्र की भगवती ही हैं श्रीकृष्ण योगमाया: स्वामी ज्ञानानंद


विंध्य क्षेत्र की भगवती ही हैं श्रीकृष्ण योगमाया: स्वामी ज्ञानानंद



करहाँ, मऊ। जनपद मुख्यालय के बकवल स्थित आम्रपाली सभागार में गीता जयंती महोत्सव पर चल रही भागवत कथा के चौथे दिन स्वामी ज्ञानानन्द सरस्वतीजी महाराज ने श्रीकृष्ण के अवतार की कथा श्रवण कराया। बताया कि एक साथ श्रीकृष्ण और भगवती योगमाया का जन्म हुआ। विंध्य क्षेत्र में जो भगवती अर्चित-पूजित होती हैं, वही श्रीकृष्ण योगमाया हैं।

स्वामी जी ने कथा विस्तार करते हुए बताया कि कृष्ण अवतार के बाद आकाशवाणी करके भगवती योगमाया रथारूढ़ होकर विंध्यक्षेत्र के त्रिकोण पर्वत पर आकर विराजमान हुई। तबसे लेकर अबतक भक्तगण उनकी पूजा करते हैं। जब भाद्र कृष्ण अष्टमी बुधवार की मध्यरात्रि में भगवती योगमाया के साथ  भगवान श्रीकृष्ण चन्द्र का प्राकट्य हुआ। उस समय वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाइसवें द्वापर का आठ लाख तिरसठ हजार आठ सौ पचहत्तरवां वर्ष व्यतीत हो रहा था। जिस रात्रि को जिस क्षण वृष्णि वंश में श्रीकृष्ण जन्में ठीक उसी क्षण नन्दगोप कुल में भगवती योगमाया ने जन्म ग्रहण किया। स्वामी जी ने बताया कि जन्माष्टमी व्रत महोत्सव केवल कृष्ण के साथ नही बल्कि योगमाया सहित श्रीकृष्ण योगमाया जन्माष्टमी व्रत महोत्सव का आयोजन तीर्थ देवालय गृह कुटुम्ब में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को श्रद्धा व उत्साह पूर्वक करना चाहिए। कहा कि कंस कारागार माथुर मण्डल से महात्मा वसुदेव के मस्तक पर विराजमान शेषछत्रावेष्टित बालकृष्ण रातो-रात गोकुल में माता यशोदा के पर्यंक में विराजमान हो गये और यशोदा जी की कन्या श्रीयोगमाया जी क्रूरकर्मा कंस को ललकारती हुई  मथुरापुरी के आकाश से देवराज इन्द्र के रथ में बैठकर  अर्चित-पूजित होती हुई विन्ध्याचल पर्वत पर आकर विन्ध्यवासिनी नाम से प्रसिद्ध हो गई। वह अब अपना दर्शन-पूजन करने वाले श्रद्धालुओं के समस्त संकट बाधाओं को चूर्ण-चूर्ण कर देती है। अपने उपासकों को धन-धान्य, शुभमति, पुत्र-पौत्रादि से सम्पन्न बना देती हैं l आज भारतीय आस्था का सौभाग्य है कि विन्ध्याचल पर्वत शिखर पर जहां योगमाया जी अवतरित हुई थी, ठीक उसी स्थल पर श्रीकृष्णयोगमाया शक्ति पीठ का दिव्य देवालय निर्मित किया जा रहा है। यह सदियों तक श्रीकृष्ण योगमाया के साथ व्रज-विन्ध्य धाम का सनातनी कथा संवाद करता रहेगा।

पूर्वाह्न सत्र में आचार्यगण पंडित धनंजय, अभिषेक, गौरव एवं शुभम के द्वारा यज्ञ कर्म संपादित कराए जाते हैं जबकि अपराह्न सत्र में बटुक विमल, प्रियव्रत, सत्यव्रत के संयोजन में स्वामी जी के श्रीमुख से कथा निःसृत होती है। कथा में पंडित हरिओम शरण, मुख्य यजमान उर्मिला सिंह, संतोष द्विवेदी, विनोद सिंह, मधुरिमा, पारसमणि, उमाशंकर सिंह, सुशीला देवी, बालेन्द्र भूषण सिंह,  रामविजय सिंह सहित सैकड़ों स्त्री-पुरूष श्रद्धालु श्रोतागण उपस्थित रहे। सबने अंत मे आरती में भाग लेकर प्रसाद ग्रहण किया एवं स्वामी जी का आशीर्वाद ग्रहण किया।

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