🌻🪷बसंत पंचमी की क्या है महत्ता-?🪷🌻

🌻🪷बसंत पंचमी की क्या है महत्ता-?🪷🌻


करहाँ (मऊ) : माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन सरस्वती के जन्म के विषय में एक कथा कही जाती है। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड की रचना की और फिर रचना के बाद मनुष्य और पशुओं की रचना की तो यह महसूस किया कि शब्द के बिना इस सम्पूर्ण सृष्टि का कोई मतलब नहीं है। शब्द यानि नाद के बिना तो कोई भी अपने विचार एक दूसरे तक नहीं पहुॅंचा पाएगा। शब्द विहीन तो ऐसी सृष्टि के लिए अभिशाप साबित होगा।

कहते हैं कि उन्होंने विष्णु से अनुमति लेकर एक चतुर्भुजधारी महिला की उत्पत्ति की। इनके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में पुस्तक, तीसरे हाथ में माला और चौथा हाथ वरमुद्रा में विद्यमान था। माला तो हमारे दर्शन में वैराग्य का प्रतीक माना जाता है। वरमुद्रा सभी प्राणियों को अभय प्रदान करती है। वीणा को झॅंकृत करने से पैदा हुई गूॅंज ही वह आदि शब्द माना जाता है जिससे आगे चलकर ज्ञान का विकास हुआ। ज्ञान और विज्ञान के प्रचार-प्रसार का मूलस्रोत सरस्वती के होने की वजह से उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए प्रत्येक वर्ष माघ महीने के शुक्लपक्ष की पॅंचमी को वसन्तोत्सव मनाया जाता है। बसन्त पॅंचमी के ही दिन कामदेव की भी पूजा की जाती है।

कड़ाके की सर्दियों के चलते सिमटा-सिकुड़ा मनुष्य माघ में प्रखर होते सूर्य के ताप से थोड़ा-थोड़ा खुलने लगता है। प्रकृति भी नव ऋॅंगार करके वातावरण को मादक बनाने लगती है। ऐसे में भला कामदेव अपना प्रभाव छोडऩे में पीछे कैसे रहते-? बसन्त पॅंचमी को लोग अपने-अपने घरों में सरस्वती की प्रतिमा की पूजा करते हैं। इस दिन लोग अपने बच्चे को अक्षर का अभ्यास भी करवाते हैं। कलश स्थापित करने के बाद गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा के साथ-साथ सरस्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं सरस्वती को सिन्दूर और श्रृॅंगार की अन्य वस्तुएं अर्पित करती हैं। उन्हें श्वेत वस्त्र भी पहनाए जाते हैं। यह दिन वसन्त ऋतु के आरम्भ का दिन होता है। इस दिन देवी सरस्वती और ग्रन्थों का पूजन किया जाता है। छोटे बालक-बालिका इस दिन से विद्या का आरम्भ करते हैं। सॅंगीतकार अपने वाद्ययन्त्रों की पूजा करते हैं। स्कूलों और गुरुकुलों में सरस्वती और वेद पूजन किया जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार वसन्त पॅंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इस दिन बिना मुहूर्त जाने शुभ और माॅंगलिक कार्य किए जाते है।

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