निमंत्रण पाकर स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती पहुँचें अयोध्या, क्या कहा अयोध्या पर-?
करहाँ (मऊ) : तां सत्यानामांपुरी मयोध्यां अर्थात् जहाँ पहुंचकर किसी के लिये भी युद्ध करना सम्भव नहीं था इसलिये वह पुरी "अयोध्या" सत्य एवं सार्थक नाम से प्रकाशित होती थी। मानव संविधान के निर्माता महाराज मनु ने स्वयं अयोध्या पुरी को बसाया और बनवाया था।विश्व के प्राचीन साहित्य धर्मग्रंथ आदि रामायण " वाल्मीकीय" साक्ष्य है- पंचम सर्ग के 6 ठें श्लोक में वर्णन है- अयोध्यानामनगरी तत्रासील्लोकविश्रुत। मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयं।।
निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान्। सर्ग 5|5
आयता दश च द्वे चयोजनानिमहापुरी,
श्रीमती त्रीणि विस्तीर्णा सुविभक्त महापथा।। सर्ग 5/7
उत्तर दिशा में स्थित सरयू नदी के किनारे बसी हुयी प्रचुर धन-धान्य से सम्पन्न सुखी-समृद्ध शाली वह शोभाशालिनी महापुरी बारह योजन लम्बी और तीन योजन चौड़ी थी। यानी 144 कि.मी. लम्बी और 108 कि.मी. चौड़ी यह श्री अयोध्यापुरी थी।
श्रीअयोध्या में कहीं भी कोई, अपवित्र अन्न भोजन करने वाला, मन को काबू में न रखने वाला, कामी, कृपण, क्रूर, दान न देने वाला, सदाचारशून्यनास्तिक मनुष्य देखने को भी नहीं मिलता था। द्रष्टुं शक्यमयोध्यायां नाविद्वान् न च नास्तिकः॥
श्री अवधपुरी के सभी स्त्री-पुरुष धर्मशील, संयमी, सदा प्रसन्न रहने वाले तथा शील और सदाचार की दृष्टि से महर्षियों की भांति निर्मल थे।।
सर्वे नराश्च नार्यश्च धर्म शीलाः सुसंयता:। मुदिता: शीलवृत्ताभ्यां महर्षय इवामला:।। बा. रा.6 /9
कालान्तर में इस अवधपुरी के चक्रवर्ती सम्राट महाराज मनु और शतरूपा का परम तपोमय साधना स्थल नैमिषारण्य बना, जो साधको को परम सिद्धि लाभ, देने वाला तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ लोक विश्रुत है- तीरथबर नैमिष बिख्याता। अति पुनीत साधक सिधि दाता।। श्रीराम चरित मानस - 1/143//
दम्पति की ऐसी उत्कृष्ट तपश्चर्या जो त्रिदेवों के आकर्षण का केन्द बन गयी। विधि हरिहर तप देखि अपारा। मनु समीप आए बहुबारा।। श्री राम चरित मानस 1/145//
भारतीय धर्मग्रंथ के अनुसार राजर्षि मनु और शतरूपा ने धेनुमती तट नैमिषारण्य में तेइस हजार (23000) वर्षों तक घनघोर तपस्या की। उनके अखण्ड तप प्रवाह ने परात्पर ब्रह्म परमात्मा को साक्षात् आकृष्ट कर लिया।
नैमिषारण्य श्रीहरि के त्रेतायुगीन् श्रीरामावतार की संकल्प वेदी बनी और परम पावन मोक्षपुरी, श्रीअयोध्या जी "श्रीराम जन्मभूमि" स्वरूप से उद्भाषित हो उठी, आकाश वाणी ने प्रकाश किया- ते दशरथ कौसल्यारुपा कोसलपुरी प्रगट नर भूपा, तिन्हकें गृह अवतरिहऊ जाई, रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई॥ श्रीराम चरित मानस 1/187//
परम तपोव्रती सम्राट मनु शतरूपा जो आज महाराज दशरथ और कौशल्या रूप से श्री अवध पुरी में प्रगट हुये हैं। उनके घर जाकर मैं रघुकुल में श्रेष्ठ चार भाइयों के रूप में (कृत्वात्मानं चतुर्विधम...) पराशक्ति सहित अवतार ग्रहण करूंगा। -परमशक्ति समेत अवतरिहऊँ... पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम्।
-पवित्र मनुवंश- इक्ष्वाकु कुल में अतिरथी वीर चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ हुये जो दस हजार महारथियों के साथ अकेले युद्ध करने में सामर्थ्यवान थे। जिन्हें अतिरथी दशरथ कहा जाता था॥ इक्ष्वाकुणाम अतिरथो दशरथो राजा लोकस्य परिरक्षिता॥
ऐसे शौर्य पराक्रमशाली धर्मात्मा महाराज दशरथ को पिता के रूप में और श्री अयोध्या जी को जन्मभूमि के रूप में चतुर्भुज भगवान् विष्णु ने स्वीकार किया-!! और पुनः पुत्र भाव से प्राप्त हुये। मानुष्ये चिन्तयामास जन्मभूमिमथात्मनः..
देवों के दुन्दुभि नाद मंगल स्तवन् पुष्प वर्षण से श्रीअवध धाम का वायु-व्योम हर्षोल्लसित हो उठा। श्री शुभ चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को मध्याह्न में पावन पुरी श्री अयोध्या धाम, सरयू तट, पुनर्वसु नक्षत्र, कर्क लग्न में सर्वदेवमयी कौशल्या देवी ने दिव्य शुभ लक्षणों से युक्त सर्व लोक वन्दित जगदीश्वर प्रभु श्रीराम को जन्म दिया।
उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ये पांच ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चन्द्रमा के साथ उच्चस्थ बृहस्पति अलंकृत थे। -कौशल्या जनयद् रामं दिव्य लक्षण संयुतम्...
तदनन्तर माता कैकेयी ने सत्य पराक्रमी भरत जी को जन्म दिया। भरतो नाम कैकेय्यां जज्ञे सत्य पराक्रम... महारानी सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न- इन दो बडभागी पुत्रों को जन्म दिया।
परम पवित्र पुष्य नक्षत्र- मीन लग्न में श्री भरत जी का तथा आश्लेषा नक्षत्र कर्क लग्न सूर्य के उच्चरथ स्थित में श्री लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न जी उत्पन्न हुये थे। देवताओं की दुन्दुभियां बजने लगी तथा आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। श्री अवध धाम एक महान् जनाकुल दैवी उत्सव से आच्छादित हो उठा॥ ○उत्सवश्च महानासीदयोध्यायां जनाकुल: देवदुन्दुभयो नेदुः पुष्पवृष्टिश्च खात् पतत्॥
-तमोगुण प्राधान्य हिंसा में प्रीति रखने वाले 'गौ मांस' भक्षक 'देव देवालय' आश्रम ध्वंसक' वेद विदूषक- क्रूर कर्मा' नारी चोर रावणादि नर पिशाचों का वध करके ग्यारह हजार (11000) वर्षों तक चक्रवर्ती सम्राट के रूप में मनुष्य लोक में निवास करते हुये श्री राम जी ने श्री अयोध्या के सिंहासन से सम्पूर्ण प्रजा का पालन पोषण और धर्म शासन किया।
इस प्रकार राष्ट्रधर्म संस्थापनार्थाय अवतीर्ण 28 वीं त्रेता के श्री राम मे श्री अयोध्या के दिव्य सिंहासन से मर्यादित राज सत्ता द्वारा (11000) ग्यारह हजार वर्षो तक सम्पूर्ण पृथ्वी का शासन और प्रजा का धर्म पूर्वक पालन-पोषण किया। अनन्तर परिकरो के साथ गोप्रतार तीर्थ सरयू तट से साकेत धाम को पधारे॥ ○हत्वा कूरं दुराधर्षं देवर्षीणां भयावहम्। दश वर्ष सहस्त्राणि दशवर्षशतानि च॥ वत्स्यामि मानुषे लोके पालयन् पृथिवीमिमाम्॥
○शास्त्रीय विवेचना के अनुसार भगवान श्री राम को श्री अयोध्या जी में जन्म लेने से अबतक सृष्टि के कुल 1 अरब 83 करोड 75 लाख 17 हजार 1 सौ 24 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और इतने ही वर्षों से श्री अयोध्या जी को श्री राम जन्म भूमि होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय ज्योतिष कालगणना के अनुसार सृष्टि के कुल अबतक 1 अरब 95 करोड 58 लाख 85 हजार 1 सौ 24 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं।
पूर्व सर्ग के 27 चतुर्युगी वर्ष और 28 वें चतुर्युगीय आरम्भ के प्रथम सतयुग व्यतीत होने और 28 वीं त्रेतारम्भ के द्वितीय वर्ष मास चैत्र शुक्ल नवमी तिथी 'पुनर्वसु नक्षत्र' कर्क लग्न, मध्याह्न ठीक 12 बजे परमात्मा श्री राम ने श्री अयोध्या जी को अपनी जन्म भूमि बनाया अर्थात् श्री अयोध्या जी में जन्म (अवतार) ग्रहण किया।
हिन्दू संस्कृति का गौरव ग्रन्थ श्री अध्यात्म रामायण सुन्दर काण्ड प्रथम सर्ग का 48 वॉं मंत्र नाद करता है। ○पुराहं ब्रहम्णाप्रोक्ता हि अष्टाविंशति पर्यये। त्रेता युगे दाशरथी रामो नारायणोsव्ययः॥
अर्थात् आदि महर्षि वाल्मीक जी जो अपने वाल्मीकीय रामायण के 18 वें सर्ग मे कहते हैं कि... ○मासे चैत्रे नावमिके तिथौ कौसल्या जनयद् रामं दिव्य लक्षण संयुतम्॥
एतएव शास्त्रीय मीमांसा के अनुसार समस्त आर्षग्रंथ पूर्व सर्ग के 28 वीं त्रेता चैत्र शुक्ल नवमी तिथी को भगवान् श्री राम का प्राकट्य और जन्मभूमि अयोध्या जी को स्वीकार करते है और इसी क्रमानुसार चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को चैत्र राम नवमी कहा जाता हैं। भारतीय पर्वो में इसका अपना सर्वोपरि स्थान भी हैं। इसी भावधारा के अनुसार करोड़ों-करोड़ों हिन्दू लाखों वर्ष से चैत्र शुक्ल रामनवमी के पवित्र पर्व पर श्री राम जन्मभूमि श्री अयोध्या सरयू जी की प्रदक्षिणा व परिक्रमा करता है। बालकरूप राम का ध्यान सरयू मज्जन "स्नान" मोक्षपुरी श्री अयोध्या जी की परिक्रमा देवदर्शन 'पूजन' व्रत का क्रम भारतीय आस्था ने अबतक जारी रखा है। अनेकों राजनैतिक कुचक्रों 'बर्वरता पूर्ण आघातों, अमानवीय हिंसक धर्मान्धतापूर्ण क्रूर-कृत्यों के बावजूद भी श्री राम जन्मभूमि अयोध्या का शाश्वत् सम्बन्ध- हिन्दू आस्था आज भी अभेद्य- अच्छेद्य है।
-प्रार्थना है= मंगलमूर्ति प्रभु श्री राम विश्व मानव को सार्वभौम मंगल प्रदान करें-!! ○मंगलम् कौसलेन्द्राय महनीय गुणात्मने। चक्रवर्ती तनूजाय सार्वभौमाय मंगलम्॥
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