करहां परिक्षेत्र के दर्जन भर गांव बंदरों के उपद्रव से त्रस्त



करहां परिक्षेत्र के दर्जन भर गांव बंदरों के उपद्रव से त्रस्त



करहां, मु.बाद गोहना, मऊ। करहां परिक्षेत्र के दर्जन भर गांवों में बंदरों का भयंकर उपद्रव है। यहां पहले बंदर क्षेत्र के सुप्रसिद्ध मठ गुरादरी धाम पर रहते थे लेकिन खाद्य पदार्थो के अभाव से अब यह करहां बाजार सहित चकजाफ़री, मालव, माहपुर, रसूलपुर, परवा, राजर्षि नगर, दरौरा, गद्दोपुर, घुटमा, आतागंज, जोगीपुरा, जमुई, भैसहा आदि गांवों में भयंकर उपद्रव मचा रहे हैं। करहां बाजार आने-जाने वाले राहगीरों खासकर महिला, बच्चो, छात्राओं, बुजुर्गों को निशाना बनाते हैं। कोई सामान लेकर जाना एक मुश्किल टास्क है। कई गांवों में किसी तरह की फसलें उगाना, अनाज व कपड़े सुखाना, पौधे लगाना, बाहर खाना-पीना मुश्किल है। अब तक यह उत्पाती बंदर करहां की महिला ग्रामप्रधान पूनम जायसवाल सहित शकुन्तला देवी, गीता सिंह, खुर्शीद अहमद, सोनी शर्मा, लीलावती चौरसिया, सोहराब अहमद, भगवती देवी, दिनेश प्रजापति आदि अनेकों महिला, पुरुषों, बच्चों एवं पशुओं को काट चुके हैं। अभी गुरुवार को ही रामधनी प्रजापति की गाय बंदर काटने से मर गयी है। 2017 में करहां निवासिनी 24 वर्षीय नूतन पुत्री स्वर्गीय रामजी सिंह की दुःखद और असामयिक मृत्यु मरदह स्थित अपने ननिहाल में बंदर की चपेट से ही छत से गिरकर हो गयी थी। करहां के अनेक जागरुक नागरिक एवं व्यापार मंडल के द्वारा कई बार जनसुनवाई पोर्टल एवं डीएफओ मऊ से गुहार लगाई लेकिन इसके बावजूद कोई सार्थक पहल नहीं हुई। एक बार ग्रामवासियों के द्वारा स्वयं चंदा लगाकर मुक्ति का प्रयास किया गया लेकिन वह नाकाफी रहा।


बता दें कि पिछले कई वर्षों से करहां बाजार एवं गांव सहित करहां परिक्षेत्र के दर्जन भर गांव बंदरों के उपद्रव से त्रस्त है। बंदरो के हमलों एवं काटने से हर घर परेशान है। क्या व्यापारी, क्या किसान, क्या मरीज, क्या दुकानदार, क्या विद्यार्थी, क्या महिलाएं क्या बुजुर्ग.. कोई ऐसा तबका नहीं है जो इस क्षेत्र में अनावश्यक बढ़ रहे बंदरो की भारी तादात से डरा और सहमा हुआ न हो। जरूरत है इस पर संबंधित संस्थानों एवं विभागों के संज्ञान लेने की और इस समस्या से निजात दिलाने की।


ज्ञातव्य हो कि पहले यह बंदर इस क्षेत्र के प्राचीन और प्रसिद्ध मठ गुरादरी धाम पर ही रहते थे परन्तु मठ के सुंदरीकरण के कारण उनके आश्रय स्थलों में कमी आ गयी। इनके खाद्य पदार्थों में भी कमी आ गई। महंगाई के इस दौर में जब मनुष्यों को खाने के लिए पर्याप्त चना नसीब नहीं होता तो इस क्षेत्र के लोग श्रद्धानुसार इन बंदरों को पर्याप्त चना कहाँ से खिला सकते हैं। इन्ही कारणों से बंदरों ने समय बदलने के साथ बाजार पकड़ लिया। अब तो एक गांव से दूसरे गांव होते हुए वर्तमान में एक दर्जन से अधिक गांवों की एक विकराल समस्या बन बैठी है। करहां, जमुई, चकजाफरी, मालव, पिटोखर, माहपुर, गद्दोपुर, परवा, राजर्षि नगर, दरौरा, आतगंज, रसूलपुर, जमुई, भैसहा, नगपुर, महमूदपुर, घुटमा आदि गांवों के लोग लगातार बंदरो के उत्पात से परेशान हैं। अब तो करहां गांव के चुनाव का यह सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। यहां के नागरिकों का कहना है कि जो हमारे गांव को बंदरों मुक्त करायेगा अब वोट वही पायेगा। इसके लिए डीएफओ एवं मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल से लेकर अनेक तरीके से आवाज उठाई गई है परंतु इस समस्या का कोई उचित समाधान प्राप्त नहीं हुआ। इस क्षेत्र से पॉलीथिन या झोले में कोई सामान सुरक्षित घर तक लेकर चले आना एक बहुत बड़ा टास्क है। खुले में कपड़े और अनाज नहीं सुखा सकते, बाहर गाड़ी नहीं पार्क कर सकते, बाहर बैठकर धूप नहीं सेंक सकते, नाश्ता-भोजन नहीं कर सकते, फसलें नहीं उगा सकते, पेड़-पौधे, फूल-पत्ती नहीं उगा सकते और कहीं भी बाहर निर्भीक रूप से महिलाएं, रोगी, वृद्ध, बालक जा नहीं सकते। गांव की प्रधान पूनम जायसवाल सहित इस क्षेत्र में सैकड़ो लोगों को बंदरो ने काटा है। खासकर महिलाओं एवं बच्चों पर बंदर ज्यादा चपेट करते हैं। इनकी जनरेशन भी वर्ष में दो बार बढ़ जाती है। जिस क्षेत्र के लोग मठ पर श्रद्धा से बंदरों को हनुमान जी का अवतार मानकर पूजते थे वही लोग अब इनके उपद्रव से डरे-सहमें घरों में दुबके रहते हैं।



 क्षेत्रवासी विष्णुकांत श्रीवास्तव, राहुल सिंह, श्यामविहारी जायसवाल, सुनील सिंह, विक्की वर्मा, गीता देवी, छविनाथ भारती, जगदीश चौहान, शकुन्तला सिंह, धीरेंद्र प्रताप, गोल्डी कुमार, मधुबाला सिंह, अशफ़ाक अहमद, जेपी यादव, प्रतिभा सिंह, अयोध्या प्रसाद, श्रीकांत सिंह, सुलेखा मौर्या, अनिल भारद्वाज, शमशाद अहमद, राधेश्याम प्रजापति, आनंद गुप्ता, रामअवतार कन्नौजिया आदि ने संबंधित विभाग एवं अधिकारियों से उत्पाती बंदरों से मुक्ति की गुहार लगाई है।



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