राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक गायत्री परिवार में निभा रहे सक्रिय भूमिका
◆शिक्षा संग दिया संस्कृति व संस्कार, गढ़ा सुघड़ आकार
◆पुरस्कार के मानकों का छुआ प्रतिमान, नशा उन्मूलन पर किये बड़े काम
करहाँ (मऊ) : अपनी संस्कृति व संस्कारों के प्रति अटूट निष्ठा रखने वाले व शिक्षा को इसके बिना अधूरा मानने वाले डाक्टर रामसुख यादव ने ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक स्तर के संवर्धन के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनकी निष्ठा, संकल्प और शिक्षा के प्रति समर्पण के उत्कृष्ट परिणामों का आंकलन करने के बाद सरकार ने उन्हें वर्ष 2013 के लिये वर्ष 2014 में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित किया था। वे उस समय मुहम्मदाबाद गोहना के जूनियर विद्यालय में प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यरत थे। सेवानिवृत्ति के बाद आप वर्तमान में गायत्री परिवार के जिला संयोजक के रूप में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं।
बता दें कि सहुवारी गांव के एक किसान परिवार में जन्मे रामसुख यादव ने प्रारंभिक शिक्षा देवलास, हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट टाउन इंटर कॉलेज मुहम्मदाबाद गोहना से किया। 1973 में बीटीसी करने के बाद 1974 से प्राथमिक विद्यालय में अध्यापन करने लगे। शिक्षण कार्य करते हुए भी गोरखपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत विषय में 'सूक्ति मुक्तावली का अनुवाद एवं परिशीलन' पर शोध कार्य किए। 2006 से उच्च प्राथमिक विद्यालय खलिसा मुहम्मदाबाद में प्रभारी प्रधानाध्यापक एवं 2011 से उच्च प्राथमिक विद्यालय मुहम्मदाबाद गोहना में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत रहे। संस्कृत के विद्यार्थी होते हुए भी वे उच्च प्राथमिक विद्यालय में गणित एवं विज्ञान विषय के शिक्षण में काफी रुचि रखते थे। उनके द्वारा पढ़ाए गए छात्रों को इन विषयों में सदैव अच्छे 'अंक मिलते रहे। मुहम्मदाबाद गोहना में कार्यरत रहते हुए पर्यावरण व नशा उन्मूलन विषय पर अद्वितीय काम किया। आपके विद्यालय के छात्र योग एवं स्काउट में कई बार विभिन्न स्तर की प्रतियोगिताओं में स्थान प्राप्त किये।
आज भी अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक सक्रियता के कारण गायत्री परिवार में वे 2001 से लगातार जिला संयोजक बने हुये हैं। शांतिकुंज हरिद्वार में भी वे विभिन्न गतिविधियों का संचालन करते हैं। छात्रों सुसंस्कार लाने के लिए विद्यालय के अतिरिक्त समय में पूरे जनपद में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा करवाने, नशा उन्मूलन एवं स्वच्छता अभियान में इनका सक्रिय योगदान हमेशा बना रहता था। संस्कारशाला के माध्यम से बच्चों में संस्कार एवं सद्ज्ञान लाने के काम में अभी भी आप जुड़े हुए हैं।
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