श्रीमद्भागवत कथा के विश्राम दिवस तुलसी-शालिग्राम के परिणयोत्सव पर हुई महा-मंगलारती
करहाँ, मऊ। सदर तहसील के बकवल स्थित आम्रपाली सभागार में गीता जयंती महोत्सव पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के सातवें एवं विश्राम दिवस पर की कथा में परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी ज्ञानानन्द सरस्वतीजी महाराज ने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का प्रसंग सुनाया। इस अवसर पर तुलसी-शालिग्राम का विवाह संपन्न कराया गया एवं तत्पश्चात समवेत स्वर में मुख्य यजमान के द्वारा महा-मंगलारती सम्पन्न करायी गयी।
कथा विस्तार करते हुये स्वामी जी ने बताया कि परमात्मा किसी का हरण नहीं ग्रहण करता है। रुक्मिणी का हरण नहीं बल्कि लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र की वह ग्रहण लीला है। रूक्मिणी महारानी ने प्रार्थना किया था कि हे प्रभु! आपके त्रिभुवन सुन्दर गुणों को जबसे हमने श्रवण किया है, आपके सौन्दर्य, माधुर्य पान करने के लिए हमारी एक-एक श्वांस, चित्त-मन-प्राण आपमें प्रविष्ट हो गया है। मेरी आत्मा आपको समर्पित हो चुकी है। आत्मर्पितश्च! हे जगतपति यदि जन्म जन्मान्तर के मेरे कुछ भी पुण्य, दान, नियम, व्रत, देव, गुरु, विप्र पूजन आदि के द्वारा परमेश्वर की आराधना की गई हो तो आप गदाग्रज जी भगवान श्रीद्वारकाधीश स्वयं आकर मेरा पाणिग्रहण करें। पाणिं ग्रहणातु में! और कोई अन्य शिशुपाल आदि मेरा स्पर्श न कर सके। कहा कि माता रुक्मिणी के ईश्वरार्पित सत्य संकल्प को पूर्ण करने के लिए रथारूढ़ गरुणध्वज भगवान का आगमन हो गया और मित्थ्याभिमानी नरपतियों के मद को चूर्ण करते हुए रुक्मिणी महारानी को ग्रहण कर लिया। विदर्भराज कुमारी रुक्मिणी जी को द्वारका में लाकर श्रीभगवान कृष्णचन्द्र ने उनका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। द्वारकापुरी के प्रत्येक द्वार पर केलों के खम्भे, सुपारी के मांगलिक पौधे, चित्र-विचित्र मालाएं, ध्वजा-पताकाएं, आम्र-अशोक, तमाल-कुशा के तोरण वंदनवार; विल्व, दूर्वा, तुलसी, खील, हरिद्रा, अक्षत, चन्दन, पुष्प, धूप-दीप वैदिक ध्वनि मन्त्रनाद, मंगलकलश लिए चार-चार दांतो वाले हाथियों के समूह, उछलती-कूदती सागर की तरंगो से द्वारकापुरी अपूर्व शोभा सम्पन्न होने लगी। द्वारकावासी महालक्ष्मी को साक्षात रुक्मिणी के रूप में और द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्णचन्द्र जी को चतुर्भुज महाविष्णु के रूप में देखकर परम आनन्दित हो उठे। महामोदः पुरोकसाम!
इस अवसर पर भगवान शालिग्राम और तुलसी महारानी का मांगलिक परिणय उत्सव किया गया और वैदिक आचार्यो ने मन्त्र पाठ से और माँ शारदे के वरदहस्त प्राप्त पुत्रों ने अपनी भजन माधुरी से श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। मंगल श्रृंगार निवेदन व गुरूपीठ पूजन के साथ महाआरती की गई और श्रीमद्भागवत कथा को विश्राम दिया गया। इस अवसर पर मुख्य यजमान उर्मिला सिंह, अधिवक्ता अशीत पाठक, आशीष चौधरी, अक्षय पाण्डेय, डॉक्टर वी.वी. राय, श्याम चौबे, धनंजय पांडेय, रमेश राय, डॉक्टर आर.एस. सिंह, विमल मिश्र, अभिषेक आचार्य, महेशचंद्र, गौरव मिश्र, रेनू देवी, आशीष तिवारी, नेहा सिंह, विनीत पांडेय आदि मौजूद रहे।





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