हवन, पूर्णाहुति, भंडारा व स्वामीजी के मंगल आशीष पूर्वक सम्पन्न हुई महायज्ञ
करहाँ (मऊ) : यज्ञ में पूर्णाहुति का विशेष महत्व होता है। कोई भी यज्ञ वरुण पूजन व कलश यात्रा से शुरू होकर पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न होती है। जब वैदिक मंत्रों से सम्पूर्ण समिधा अर्पित कर ली जाती है, तब नारियल व भोग-प्रसाद की पूर्ण आहुति निवेदित की जाती है। अर्थात सब कुछ पूर्ण हुआ। सनातन में सब कुछ अपने आप में पूर्ण है। "पूर्णमिदह पूर्णमिदम पूर्णात पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्ण मादाय पूर्ण मेवा वशिष्यते।"
उक्त उद्गार आद्य शंकराचार्य प्रज्ञा धाम गंगा घोष गाधिपुरी, श्रीमद आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य वैदिक शोध संस्थानम काशी, श्रीपीठ गोवर्धन मथुरा, श्रीकृष्ण योगमाया शक्तिपीठ अष्टभुजा व श्रीगोकुलम धाम मोतिया झील विंध्याचल के संस्थापक अध्यक्ष व भारत राष्ट्र के प्रख्यात शांकर व दंडी सन्यासी परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी ज्ञानानंद सरस्वतीजी महाराज ने व्यक्त किये। वे जफरपुर शिव मंदिर पर चल रही सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा व सह रुद्राम्बिका महायज्ञ की पूर्णाहुति पर आयोजक मंडल को मंगल आशीष प्रदान कर रहे थे।
इस अवसर पर मुख्य रूप से हरिओम शरण महाराज, आशीष तिवारी, डॉक्टर अजय सिंह, विनीत पांडेय, रामबृक्ष यादव, सत्यव्रत व प्रियव्रत शुक्ल, मनोज सिंह, प्रभुनाथ राम, आयुष मिश्र, ओंकारेश्वर सिंह, अशीत कुमार पाठक सहित सैकड़ों स्त्री-पुरुष श्रद्धालुगण मौजूद रहे।
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