ऐतिहासिक व प्राचीन है भतड़ी के चौबाह बाबा की मूर्ति


ऐतिहासिक व प्राचीन है भतड़ी के चौबाह बाबा की मूर्ति


◆गढ़वा किले से बताया जाता है इसका संबंध

◆मूर्ति के नीचे बताया जाता है किले का गुप्त खजाना


करहाँ (मऊ) : मुहम्मदाबाद गोहना ब्लाक के भतड़ी चकभतड़ी गांव की चौहान बस्ती के ठीक पीछे व सुप्रसिद्ध गढ़वा किले के पूर्वी छोर पर प्राचीन व ऐतिहासिक चौबाह बाबा की मूर्ति व विशाल मंदिर स्थित है। गांव के नर्वदेश्वर मंदिर, ग्राम देवता एवं चौबाह बाबा की प्रतिमा के नीचे गढ़वा किले के गुप्त खजाने का तहखाना बताया बजाता है। इस प्रतिमा व खजाने के बारे में अनेक तरह की किवदंतियां प्रचलित हैं। आवश्यकता है इस मूर्ति के पुरातात्विक शोध की, ताकि इसके समय-काल एवं मूर्ति की सत्यता का पता चल सके। आखिर जिस चौमुखी व प्राचीन पत्थर की मूर्ति को ग्रामीण यहां सैकड़ों वर्षों से चौबाह बाबा के रूप में पूजते चले आ रहे हैं, वह वस्तुतः किस देवी-देवता या महापुरुष की प्रतिमा है-?


पहली किवदंति के अनुसार गांव के चौबाह बाबा की चौमुखी प्रतिमा, ग्राम देवता का स्थान व नर्वदेश्वर शिवालय का संबंध गढ़वा किले से लगाया जाता है। गांव के पुराने लोंगो ने बताया कि उक्त स्थान गढ़वा किले का पूर्वी द्वार माना जाता है। गढ़वा किले पर आक्रमण के समय इन्ही देवस्थानों के नीचे छुपे तहखानों में किले के खजाने को छुपा दिया गया। इसे एक अनजाने भय के कारण कभी भी कोई छूने की हिम्मत नहीं करता।

दूसरी किवदंति के अनुसार इस मूर्ति को कुछ यात्री किसी बड़े वाहन से लेकर कहीं जा रहे थे। इसी स्थान पर मूर्ति गिर गयी और उठाने से नहीं उठी। मजबूर होकर इसी स्थान पर मूर्ति छोड़कर यात्री चले गये।

तीसरी किवदंती के अनुसार यह चौमुखी प्रतिमा कई सौ वर्षों पहले इसी स्थान से जमीन के अंदर से प्रकट हुई है। तबसे लेकर अबतक यहां के ग्रामीण यहां हिन्दू रीति-रिवाज से पूजन-अर्चन करते चले आ रहे हैं। यहां ग्रामीणों ने मिलकर एक बड़ा मंदिर का निर्माण कर दिया। कुछ लोग इस चौमुखी प्रतिमा को ब्रह्मा व गौतम बुद्ध की प्रतिमा भी बताते हैं। अब जो भी बात सही हो लेकिन पहली बार इस विशालकाय आदमकद चौमुखी प्रतिमा को देखने से इसकी ऐतिहासिकता व प्राचीनता का सहज ही बोध होता है। बतादें कि मंदिर की नींव 2020 में डाली गई जबकि यह मंदिर 2024 में बनकर तैयार हुआ।


मान्यता यह है कि यहां के ग्रामीण इसे गांव की प्राचीन व ऐतिहासिक धरोहर मानकर पूजते हैं। वर्ष में दो-तीन बार सार्वजनकि पूजन, भजन, कीर्तन व भंडारे का आयोजन होता है। पुरातत्व विभाग की टीम ने अभी गढ़वा किले के अवशेषों की जांच रिपोर्ट सार्वजनकि नहीं की है, जिसका क्षेत्रीय जनता व गढ़वा के किसानों को बेसब्री से इंतजार है। फिलहाल इस क्षेत्र की 200 मीटर के क्षेत्र को प्रतिबंधित घोषित किया गया है। इससे खेती किसानी तो हो रही है लेकिन कोई नवनिर्माण या खुदाई का कार्य नहीं किया जा सकता।


प्राचीन चौमुखी प्रतिमा के ऊपर इस मंदिर की नींव भारत राष्ट्र के प्रख्यात शांकर सन्यासी एवं श्रीमद आद्यजगदगुरु शंकराचार्य वैदिक शोध संस्थानम काशी के संस्थापक अध्यक्ष परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी ज्ञानानंद सरस्वतीजी महाराज के दिशा निर्देशों के अनुसार ग्रामीणों ने स्थापित करवाई।


●यह स्थान बाप-दादाओं के जमाने से ग्रामीणों के द्वारा चौबाह बाबा के रुप में पूजा जाता है। मैं लगभग 100 वर्ष की अवस्था में भी यथाशक्ति पुजारी के रुप में मंदिर की सेवा में लगा हूं। 
◆पुजारी, फूलचंद महाराज


●चौबाह बाबा की मूर्ति, ग्राम देवता स्थान व नर्वदेश्वर शिवालय तीनो समकालीन बताये जाते हैं। चौबाह बाबा की चौमुखी प्रतिमा को कुछ लोग ब्रह्मा की मूर्ति बताते हैं, लेकिन युवावस्था की ध्यान मुद्रा व घुघराले बालों वाली इस मूर्ति को प्रथम दृष्टया देखने से बुद्ध प्रतिमा का एहसास होता है। ◆ग्रामीण, विजय बहादुर सिंह


●इस स्थान का संबंध गढ़वा किले से बताया जाता है। गढ़वा किले पर मिट्टी की खुदाई के दौरान मिले पुरातात्विक अवशेषों के बाद किले व इस मंदिर क्षेत्र पर विभाग की तरफ से बोर्ड लगा दिया गया है। जहां किसी नवनिर्माण को प्रतिबंधित कर दिया गया है। ◆
ग्राम प्रधान, राजकुमार चौहान


●इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुये मेरे पिताजी सहित अनेक ग्रामीणों के सहयोग से लगभग 400 श्रद्धालुओं के बैठने लायक गर्भगृह का विशाल मंदिर बनकर तैयार है। आगे का रंग रौगन चल रहा है। 
◆शिक्षक, सुधाकर यादव भोला



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