प्रकांड विद्वान व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे पूर्व महंत जी
करहाँ, मऊ। हमारे पिता तुल्य गुरु महाराज ब्रह्मलीन संत जगन्नाथ दास जी एक सरल हृदय, प्रकांड विद्वान एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। मात्र 3 वर्ष की अवस्था से सतनामी संत परंपरा में रहकर अध्ययन और साधना करते हुए वैराग्याश्रम मठ गुरादरी के महंत पद पर आजीवन आसीन रहे। महाराजश्री संस्कृत, व्याकरण, वेद, उपनिषद, गीता और संगीत के प्रकांड विद्वान थे तथा महात्मा गांधी के साथ आजादी की लड़ाई के दौरान एक काल कोठरी में बंद रहे। उनके अंदर बच्चों को कुछ न कुछ शिक्षा देने और जरूरतमंदों को सहयोग करने का प्रबल भाव सदैव बना रहता था।
यहां मठ की परंपरा में गुरु को ही पिता तुल्य माना जाता है और गुरु के कार्यकाल के बाद शिष्य का पुत्र के समान अधिकार व कर्तव्य बनता है। 114 वर्ष की अवस्था में ब्रह्मलीन हुए पितातुल्य महान संत के श्रीचरणों में क्षेत्रवासियों सहित नमन निवेदन है।
मानस धुरंधर महन्त भगवान दास जी, मठ गुरादरी-मऊ
Post a Comment