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जैसा खाएंगे अन्न वैसा बनेगा मन : पंडित महेश चंद्र मिश्र


जैसा खाएंगे अन्न वैसा बनेगा मन : पंडित महेश चंद्र मिश्र



करहाँ, मुहम्मदाबाद गोहना, मऊ। मुहम्मदाबाद गोहना तहसील अंतर्गत के ग्रामसभा नगपुर में चल रही  श्रीमदभागवत कथा के दूसरे दिन कथा प्रवक्ता पंडित महेश चंद्र ने द्रौपदी चीरहरण की कथा सुनाई। बताया कि दुर्योधन का दूषित अन्न खाने से भीष्म पितामह जैसे ज्ञानी व्यक्ति भी कुछ बोल न सके। कहा कि जब हम कभी जीवन में दूषित अन्न खाते हैं तब हमारी बुद्धि और विवेक का हरण हो जाता है। इसलिए कहा गया है कि जैसा अन्न वैसा मन।

श्रीमद्भागवत कथा यज्ञ के पूर्वाह्न के सत्र में यज्ञाचार्यद्वय पंडित आशीष तिवारी व पंडित विनीत पांडेय ने मुख्य यजमान इंदूमती देवी व अखिलानंद द्विवेदी का मंडप प्रवेश कराके वैदिक रीति से वेदी पूजन कराया। परायण अनुसार समिधा दी गयी तथा उपस्थित भक्तों ने यज्ञ मंडप की परिक्रमा की। अपराह्न सत्र में कथा कहते हुए पण्डित महेश चंद्र मिश्र ने बताया कि उत्तरा के गर्भस्थ शिशु की रक्षा करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण भीष्म पितामह को दर्शन देने के लिए गये। वह अठारह दिन से सरसैय्या पर पड़े उत्तरायण सूर्य की प्रतिक्षा कर रहे थे। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था। भगवान श्रीकृष्ण के साथ पाण्डव और द्रोपदी भी गये। भीष्म पितामह ने गोविन्द को देखा तो आँखो से अश्रु धारा बहने लगी, सोचने लगे कन्हैया कितने दयालु हैं आज अपने भक्त की अन्तिम यात्रा को सफल बनाने स्वयं आ गये। अहोभाग्य देखो कि प्यासे के पास कुँआ ही आ गया।

भीष्म पितामह ने पाण्डवों को दानधर्म, राजधर्म, मोक्षधर्म इत्यादि का उपदेश दिया। जब भीष्म पितामह उपदेश दे रहे थे तो द्रोपदी को हँसी आ गयी तो भीष्म पितामह ने हंसने का कारण पूछा। कहने लगी कुछ नहीं पितामह बस ऐसे ही हंसी आ गई। पितामह ने कहा कुलवती स्त्रियां बिना कारण के हंस ही नहीं सकती बताओ क्या बात है? द्रोपदी ने कहा पितामह आज तो आप बड़े सुंदर-सुंदर उपदेश दे रहे हैं पर जब भरी सभा में हमें निर्वस्त्र किया जा रहा था तब तो आप मौन थे। तब आपका ज्ञान कहां गया था? भीष्म पितामह रोने लगे कहा पुत्री मुझे क्षमा कर दो। उस समय मैं दुर्योधन का दूषित अन्न खा रहा था, इसलिये बुद्धि भी दूषित हो गई थी। आज अठारह दिन से मैने कुछ भी नहीं खाया और दुर्योधन के दूषित अन्न से बना रक्त एक-एक बूंद करके मेरे शरीर से निकल गया है। अब मेरी बुद्धि एकदम पवित्र हो गई है।

कथा प्रवक्ता ने बताया कि जैसा हम खायेगें अन्न वैसा ही हमारा बनेगा मन। इसलिये जीवन में हमेशा भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार करके खाना है। इस अवसर पर राजकुमार तिवारी, अजय द्विवेदी, प्रभुनाथ राम, दिनेश मौर्य, कृष्णा द्विवेदी, अवधनाथ राम, अरुण त्रिपाठी, वीरेंद्र मद्धेशिया सहित सैकड़ों श्रोता उपस्थित रहे।

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