बेखौपना, स्पष्टवादिता व बेलौसपना के अद्भुत सम्मिश्रण थे पिताजी

बेखौपना, स्पष्टवादिता व बेलौसपना के अद्भुत सम्मिश्रण थे पिताजी

करहां (मऊ) : मेरे पिता स्व. अवधेश सिंह शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद एकदम गांव के होकर रह गए। गांव के बच्चों को गणित व अंग्रेजी पढ़ाने में दिन रात लगे रहते थे। उनके अंदर बेख़ौफ़पना स्पष्टवादिता व बेलौसपना का अद्भुत सम्मिश्रण था। इसीलिए उनके दोस्तों की फ़ेहरिस्त में बच्चे व बुजुर्ग दोनों शामिल थे।

निष्पक्षता, संवेदनशीलता व परदुःखकातरता इस हद तक थी कि सभी के साथ खड़े हो जाते, किसी के मुंह पर उसी के खिलाफ लेकिन सत्य बोल देते थे। जाहिर है कि लोग नाराज भी होते थे, पर उनकी लोकप्रियता उन नाराज़ लोंगो पर बीस पड़ती थी।

उनकी खूबियों को अपने जीवन मे मैं कुछ भी उतार पाया तो मेरा जीवन सार्थक व सफल माना जायेगा। श्राद्ध पक्ष में एक पुत्र का अपने बाबूजी को अश्रुपूरित तर्पण।

◆वीर प्रकाश सिंह, पूर्व वरिष्ठ कार्मिक अधिकारी, हरदसपुर, मऊ


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