देवताओं को भी दुर्लभ है श्रीमद्भागवत कथा : विनयानंद महाराज


देवताओं को भी दुर्लभ है श्रीमद्भागवत कथा : विनयानंद महाराज

करहां (मऊ) : जब जन्मांतर के पुण्य फल उदित होते हैं और जिस व्यक्ति पर ईश्वर व पूर्वजों का विशेष अनुग्रह होता है सिर्फ उसे ही श्रीमद्भागवत कथा करवाने और सुनने का सौभाग्य प्राप्त होता है। श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण से 21 पीढ़ी के अतृप्त पितरों को मोक्ष हो जाता है। यह कथा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की कथा है। यह कथा देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। "सुराणामपि दुर्लभा।"

उक्त उद्गार अयोध्या से पधारे भागवत कथा वाचक विनयानन्दजी महाराज ने व्यक्त किया। वे मुहम्मदाबाद गोहना तहसील के कसारी में आयोजित सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन की कथा में बोल रहे थे। उन्होंने कथा विस्तार करते हुए कहा कि शुकदेवजी महाराज मृत्युलोक में जन्में राजा परीक्षित को भागवत की कथा सुना रहे थे। उसी समय वहाँ देवता उपस्थित हो गये। देवताओं ने शुकदेवजी को प्रणाम किया और कहा कि हम अमृत कलश लेकर आये हैं। यह राजा परीक्षित को पिला दीजिये और हम सभी को कथा सुधामृत पान करा दीजिये।

शुकदेव जी ने कहा "क्व सुधा क्व कथा लोके क्व काचः क्व मणिर्महान॥ कहाँ सुधामृत काँच का टुकड़ा और कहाँ कथामृत मणि। विनिमय तो बराबर वाली वस्तु से किया जाता है-? इसपर उन्होंने देवताओं को डाँटकर भगा दिया। ब्रह्माजी के पास जाकर देवताओ ने कहा कि- महाराज शुकदेवजी ने हमको कथामृत पान नही कराया। जबकि वह राजा परीक्षित को कथा सुना रहे हैं। ब्रह्माजी ने तराजू में रख कर अन्य साधनो को भागवतजी के बराबर तौलना चाहा पर स्वर्ग के सारे साधन न्यून हो गये।

इस पर महाराजजी ने बताया कि जो परमात्मा श्रीकृष्ण का साक्षात वाङमय स्वरूप है उससे अन्य साधनों की समता हो ही नहीं सकती। कथा में मुख्य यजमान डाक्टर रविंद्र उपाध्याय, डाक्टर अमित कुमार, अतुल, पीयूष, वीरेंद्र, घनेन्द्र, पवन व प्रदीप उपाध्याय आदि थे।।

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