वैश्विक ज्ञान कोष की अक्षय संपदा है गीता : स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती
करहाँ, मऊ। गीता हमारे देश एवं विश्वस्तर का एक ऐसा ग्रंथ है जो किसी भी मनुष्य के जीवन काल की सारी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। यह साक्षात भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी से सजा जीवन का सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक है। इसलिए गीता को वैश्विक ज्ञान कोष की अक्षय संपदा कहा गया है।
उक्त बातें श्रीमद आद्यजगदगुरु शंकराचार्य वैदिक शोध संस्थानम काशी, श्रीपीठ गोवर्धन एवं श्रीकृष्ण योगमाया शक्तिपीठ विंध्याचल के संस्थापक अध्यक्ष भारत राष्ट्र के प्रख्यात शांकर सन्यासी स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती जी ने व्यक्त किये। वे मऊ के बकवल में आयोजित गीता जयंती महोत्सव में बोल रहे थे। यहां गीता जयंती महोत्सव के अवसर पर श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया है।
स्वामी जी ने उपस्थित भक्तों के बीच गीता जयंती पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी श्रीमद् भगवद् गीता जयन्ती का महापर्व है, जब सनातन धर्म के सनातन पुरुष ने सनातन जीव के सनातन स्वरूप का प्रकाश किया। आत्मा की अमरता का किया गया महानाद। परिपूर्णतम ब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण चन्द्र के श्रीमुख से निःसृत साक्षात संवाद। सर्वज्ञ भगवान वेदव्यास की अमरकृति श्रीभारत राष्ट्र को श्रीमद्भगवद्गीता ग्रन्थ के रूप में प्राप्त हुई जो विश्व राष्ट्र सारस्वत ज्ञान कोष की अक्षय सम्पदा है। 1अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 124 वर्ष पूर्व स्वायम्भुव मन्वन्तर के प्रथम प्रभात में जब भुवन भास्कर साक्षात सूर्यनारायण स्वयं गीता ग्रन्थ ब्रह्मविद्या के प्रथम श्रोता बने। गीता के चतुर्थ अध्याय में गीतोपदेष्टा के श्रीमुख से स्रवित गीतामृत प्रसाद का आस्वादन करें- इमं विवस्वते योगं प्रोक्त वान हम व्ययम्। अर्थात मैने स्वयं इस अविनाशी परम दुर्लभ बोध ज्ञानयोग का उपदेश सूर्यदेव को किया था। सनातन धर्मियों का भगवस बोलता है। आकाश का सूर्य संवाद करता है। श्रीभगवान ने स्वयं जिस ज्ञान का गान किया, वह मन्त्रमय गान ही आज श्रीमद्भगवद्गीता अष्टदशाध्याय के रूप में लोकविश्रुत है। अद्वैतामृतवर्षिणीं भगवतीमष्टादशा ध्यायिनीम् अम्ब त्वामनुसंदधामि भगवद्गीते भवद्वेषिणीम्।
भारतीय ऋषि मेधा ने श्रीमद्भगवद्गीता को अम्बा के रूप मे में वंदन करते हुए अपना मन्त्रमय वाक्य पुष्पोपहार अष्टादशाध्याय रुपी श्रीचरणों में अर्पित किया है। शरीर को जन्म देने वाली माता अपना दुग्ध पान कराकर काया को पुष्ट किया करती है तो श्रीगीता माता का दुग्धामृत पान करने वाला अमर बोध में प्रविष्ट हो जाता है। गीता ज्ञान यज्ञ अविनाशी आत्मा के अमरबोध- न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयःI अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ से आरम्भ होती है और इस महायज्ञ की पूर्णाहुति एकमात्र ईश्वर शरणागति के परमबोध से सम्पन्न होती है। नाम रूपात्मक जागतिक सम्बन्धों का आश्रय नहीं केवल-केवल ईश्वराश्रय, जगदाश्रय नही- जगदीश्वराश्रय।
विश्व साधक मानव मेधा का सार्वभौम आह्वान् सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। मन्मना भव भद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरू। अभ्यास वैराग्य इसकी समिधाएं हैं। जीवनशैली- अभ्यासेन- वैराग्येण। यज्ञ दान तप: कर्म नित्य नूतन उत्साह और उत्सव पूर्वक करना चाहिए न त्याज्यमिति अर्थात विपरीत परिस्थिति में चाहे प्राणसंकट ही क्यों न उपस्थित हो जाए कभी त्यागने योग्य नहीं-? कार्यमेव तत् साक्षात् श्रीमुख वाणी है- सदैव करने योग्य कर्तव्य कर्म है। गीता शास्त्र ज्ञानयज्ञ का जो कोई भी मनुष्य लोक में प्रकाश करता है, प्रचार-प्रसार करता व कराता है.. भगवद् वाणी है- न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रिय कृत्तमः। भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।। अर्थात- सम्पूर्ण पृथ्वी में उस मनुष्य से बढ़कर मेरा प्रियकार्य करने वाला और कोई दूसरा मेरा प्रिय प्राणी न तो है न ही भविष्य में हो सकता है- तस्मादन्य: प्रियतरो भुवि-!!आज से 2500 वर्ष पूर्व सनातन धर्मोद्धारक भगवत्पाद श्रीमद् आद्यजगद्गुरु शंकराचार्य भगवत्पाद जी ने भगवतगीता को किञ्चित् धीता कहकर सनातन मानव मेधा का आह्वान किया! आज मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को हम सभी सनातन धर्मी सनातन बोध स्वरुपिणी श्रीगीता माता को करांजलि बद्ध अपना प्रणाम निवेदन करते हुए प्रति प्रभात- सांध्य गीताध्ययन् अनुष्ठान व्रत का संकल्प लेकर भगवत् प्रीत्यर्थ स्वयं को कृतकृत्य करें।
इस अवसर पर कथा की मुख्य यजमान उर्मिला सिंह, पंडित हरिओम शरण, सुधा सिंह, आचार्य धनंजय, सतेंद्र सिंह, बालेन्द्र भूषण, सुनीता देवी, गौरव कुमार, डॉक्टर आर. एस. सिंह, मनोज चौहान, जितेंद्र तिवारी आदि उपस्थित रहे।
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