त्याग न करें भगवान का प्रसाद : पंडित महेशचंद्र मिश्र
करहाँ, मऊ। स्थानीय तहसील के नगपुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कथा प्रवक्ता पण्डित महेशचंद्र मिश्र ने समुद्र मंथन की कथा सुनाते हुये कहा कि कभी भी जीवन काल में भगवान की प्रसाद का अनादर नहीं करना चाहिए। यह आदर पूर्वक ग्रहण करने का विषय है त्याज्य नहीं।
यज्ञ के पूर्वाह्न सत्र में यज्ञाचार्यद्वय पंडित आशीष तिवारी व पंडित विनीत पांडेय ने मुख्य यजमान इंदूमती देवी व अखिलानंद द्विवेदी के द्वारा विधिवत वेदी पूजन व हवन करवाया। भागवत परायण के साथ उपस्थित श्रद्धालुओं ने यज्ञ मंडप की परिक्रमा की। अपराह्न सत्र की कथा में व्यासपीठ से बोलते हुए पंडित मिश्र ने कहा कि एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान नारायण के दर्शन करने गये। नारायण ने अपने गले की पुष्पमाला दुर्वासा ऋषि को पहना दिया। ऋषि ने प्रसन्न होकर वही माला देवराज इन्द्र को पहना दी। देवराज इन्द्र ने वही माला अपने ऐरावत हाथी को पहना दिया। हाथी ने प्रसाद की उस माला को तोड़कर पैरों से कुचल दिया। परिणाम स्वरूप दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को श्राप दे दिया कि जाओ लक्ष्मी से हीन हो जाओगो। लक्ष्मी से हीन देवताओं को दर-दर भटकना पड़ा।
जब नारायण के आदेश से देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया तो वहां से भी बहुत सारी चीजें निकली। आदर-अनादर के क्रम में ही बहुत सारी उपयोगी चीजों से कुछ लोग वंचित रह गए और कुछ लोंगो ने तो अमृत तक पान कर लिया। इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान की कथा और प्रसाद दोनों अमृतमयी हैं। ये आदरपूर्वक ग्राह्य हैं।
कथा में मुख्य रूप से अजय द्विवेदी, राजकुमार तिवारी, प्रभुनाथ राम, सुधाकर द्विवेदी, अरुण त्रिपाठी, दिनेश मौर्य, राकेश तिवारी, किशुन चौहान सहित सैकड़ों श्रोता उपस्थित रहे।
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