कृष्णार्पण हो भीष्म ने त्यागा था प्राण : पंडित महेश चंद्र मिश्र
करहाँ, मऊ। स्थानीय तहसील के नगपुर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा प्रवक्ता पंडित महेशचंद्र ने महाभारत के युद्ध के बाद की एक कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि सरशैय्या पर भीष्म पितामह को देखने श्रीकृष्ण भगवान स्वयं गए। अनेक विषयों पर चर्चा के बाद भीष्म पितामह ने कृष्णार्पण होकर प्राण त्यागा।
बताया कि जब श्री कृष्ण पांडवो सहित भीष्म पितामह से मिलने गए तब भगवान की ओर देख कर उन्होंने कहा कि हे प्रभु मेरी तृष्णा रहित बुद्धि रूपी पुत्री का आप वरण कर लो और जब तक मेरे प्राण न निकल जाएं तब तक प्रसन्न चित्त से मेरे सामने खड़े रहो। आपने अपने भक्त के प्रण की रक्षा के लिए अपना प्रण तोड़ दिया था। आपने प्रतिज्ञा की थी कि हम युद्ध में शस्त्र नहीं उठायेंगे और मैने प्रतिज्ञा किया कि 'आज हरिहि जो शस्त्र ना गहाऊँ तो, लाजों गंगा जननी को शान्तनु सुत न कहाऊँ। जब मैंने युद्ध में अर्जुन के ऊपर तीक्ष्ण बाण छोड़े तब आपने मेरी प्रतिज्ञा रखने के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी और रथ का पहिया लेकर मुझे मारने दौड़े थे। वह छबि हमारी आँखों में आज भी बसी हुई है। स देव देवो भगवान प्रतीक्षताम। कलेवरं यावदिदं हिनोम्यहम।। ऐसा कह कर भीष्म पितामह ने अपनी आंखों को बंद कर लिया और सूर्य उत्तरायण समय उपस्थित हो चुका था। भगवान के देखते-देखते पितामह का तेज परमात्मा के हृदय में विलीन हो गया। तब कुछ क्षण पाण्डवों सहित गोविन्द मौन हो गये और भीष्म पितामह के प्राण कृष्णार्पित हो गए।
कथा में मुख्य रूप से राजकुमार तिवारी, इंदूमती देवी, अखिलानंद द्विवेदी, अवधनाथ राम, अखिलेश दूबे, मुकेश त्रिपाठी, चंद्रभूषण त्रिपाठी, रामशकल राम, अजय कुमार, प्रज्ञा, रामदरश मौर्य सहित सैकड़ों श्रोता मौजूद रहे।
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