गजेन्द्र उपाख्यान की कथा से परिचित हुए श्रोता
कथा विस्तार के क्रम में उन्होंने बताया कि त्रिकूट पर्वत पर एक गजराज रहता था। उसे अपने बल का बड़ा अभिमान था। एक दिन सरोवर में स्नान कर रहा था कि ग्राह ने पैर पकड़ लिया। छुड़ाने के बहुत प्रयास किया लेकिन जब असमर्थ हो गया तब भगवान का ध्यान किया। परमात्मा ने आकर गजेंद्र को छुड़ाया और ग्राह का उद्धार किया।
कहा कि हमें कभी भी अपने बल का अभिमान नही करना चाहिए। गजेन्द्र पूर्वजन्म में इन्द्रद्युम्न नाम का राजा था। नारदजी के श्राप से गज योनि को प्राप्त हुया था और हूहू नाम का गन्धर्व देवल ऋषि के श्राप से ग्राह बन गया था। दोनों का भगवान ने उद्धार किया। अर्थात जो अपना सर्वस्व हारकर आर्त स्वर में प्रभु को पुकारता है वह उसकी मदद अवश्य करते हैं।
कथा में मुख्य रूप से विनोद तिवारी, मनीषा कन्नौजिया, संजय तिवारी, राधेश्याम गुप्ता, देवेंद्र तिवारी, रीना चौधरी, अनिल पटवा, प्रतिमा, चंद्रिका, मेवाती चौहान, पवन त्रिपाठी, राजेश कन्नौजिया, कमला सिंह, नवीन यादव, पन्ना देवी, आरती श्रीवास्तव, अनिरुद्ध यादव, किन्नू चौहान, नान्हू चौहान, शिवधर चौहान आदि उपस्थित रहे।
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