फत्तेपुर में ध्रुव चरित्र की कथा सुन भावविभोर हुए श्रोता
सुरुचि राजा को अत्यंत प्रिय थी। एक दिन ध्रुव जी अपने पिता की गोद में बैठ गये तो सुरुचि ने उनको गोद से उतार दिया और कहने लगी कि तुम राजा की गोद में बैठने के अधिकारी नही हो। ध्रुव जी ने कहा क्या राजा उत्तानपाद हमारे पिता नही है। सुरुचि ने कहा ये आपके पिता तो है पर मैं आपकी माँ नहीं हूँ। तुमने अभागिन सुनीति के गर्भ से जन्म लिया है। यदि राजा की गोद में बैठना चाहते हो तो भगवान का भजन करो और उनसे वरदान माँगो कि हमारे उदर से आपको जन्म दें। रोते हुए ध्रुव जी अपनी माँ के पास गये मां ने अपने पुत्र को समझाया कि बेटा किसी का अमंगल नहीं सोचते। सब अपने कर्मों का फल भोगते हैं और छोटी मां ने ठीक ही तो कहा तूने मुझ अभागिनी के गर्भ से जन्म लिया और उसने जो कहा कि भगवान का भजन करो यह भी ठीक कहा। भगवान प्रसन्न हो जायेंगे तो पिता क्या वह परमपिता अपनी गोद में बिठा लेंगे। पाँच वर्ष की उम्र में ध्रुव जी जंगल चले गए और बीच में उन्हें नारद जी मिले। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का मंत्र दिल में लेकर वह मधुवन में तप करने लगे ।
तपस्या के पांचवे महिने में ध्रुव ने सांस लेना बंद कर दिया और स्वांस को जीत लिया। सभी देवता घबराने लगे भगवान ने कहा आप चिंता न करे मेरा भक्त मुझे पाने के लिए तप कर रहा है। अंत में भगवान दर्शन देने नही अपने भक्त के दर्शन करने आये। ध्रुव जी बडे प्रसन्न हुये उनके कपोल से भगवान ने अपना शंख स्पर्श कराया तो पाँच वर्ष का ध्रुव बोलने लगा। बाद में ध्रुव ने 36 हजार साल तक राज किया और अंत में मृत्यु के सिर पर पैर रखकर परमधाम को गये।
तीसरे दिवस की कथा के दौरान मुख्य आचार्यद्वय पंडित आशीष तिवारी व पंडित प्रियव्रत शुक्ल, मुख्य यजमान रमेश सिंह व सुधा देवी, जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन अखिलेश तिवारी, महाप्रधान अमरनाथ चौहान, पूर्व जिला पंचायत सदस्य आशीष चौधरी, राधेमोहन सिंह, किशुन चौहान, एकलव्य सिंह सहित सैकड़ों श्रद्धालु श्रोतागण उपस्थित रहे। सबने मिलकर समवेत स्वर में कथा के अंत में भागवत भगवान की आरती का गान किया एवं भाग लिया प्रसाद ग्रहण कर पुण्य के भागी बने।
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