कैसे हुई वेद, शास्त्र, पुराण व श्रीमद्भागवत की रचना-? आचार्य महेश
करहाँ (मऊ) : मुहम्मदाबाद गोहना तहसील अंतर्गत फत्तेपुर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन शनिवार को देर शाम कथा प्रवक्ता आचार्य महेश ने वेद, शास्त्र, पुराण व श्रीमद्भागवत की रचना के पीछे का रहस्य सुनाया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार वेदव्यास द्वारा रचित भागवत ग्रंथ की कथा को सुनाकर शुकदेव ने राजा परीक्षित का उद्धार किया।
कथा को आगे बढ़ाते हुये उन्होंने बताया कि शुकदेवजी महाराज जैसे ही गर्भ से बाहर आये तो बिना नाल छेदन संस्कार के ही जंगल को चले गए। उनके पिता व्यासजी महाराज पीछे-पीछे पुत्र लौट आओ, पुत्र लौट आओ चिल्लाते हुए जा रहे थे। आगे सरोवर में स्त्रियां स्नान कर रही थी। शुकदेवजी को देख कर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, पर जैसे ही पीछे से व्यासजी को देखा उन्होंने लज्जा से वस्त्र धारण कर लिये। व्यासजी ने कहा कि हमारा जवान बेटा निकल गया तब तो आपने वस्त्र नहीं पहने, हमतो वृद्ध हैं और ठीक से देख भी नहीं सकते। हमको देखकर वस्त्र क्यों धारण करने लगी? स्त्रियों ने कहा कि आपके पुत्र तो वीतराग महात्मा हैं। उनके मन में स्त्री-पुरुष का भेद ही नहीं है। जैसे ही व्यासजी ने यह सुना वापस लौट आए। मन बड़ा व्यथित था। इसके बाद उन्होंने संसार के कल्याण के लिए एक वेद से चार वेद लिख दिये, छः शास्त्र की रचना कर डाली, सत्रह पुराणों की रचना कर डाली पर शान्ति नहीं मिली।
एक दिन नारदजी का आगमन हुआ तो उन्होंने बताया कि सबकुछ कर डाला पर मन बहुत अशान्त है, क्या करूँ? नारदजी ने कहा कि जब तक आप भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन नहीं करोगे, तब तक शांति नहीं मिलेगी इसलिए आप श्रीमद्भागवत की रचना करो। इस प्रकार व्यासजी ने श्रीमद्भागवत की रचना की।
पंडित महेश आचार्य ने बताया कि रचना तो हो गई पर इसको पढ़ाये कौन? क्योंकि भागवत परमहंसों की संहिता है, उसे पढ़ाने वाला कोई वीतराग महात्मा होना चाहिए, जिसने काम-क्रोध को जीत लिया हो। सोचा कि शुकदेवजी तो हैं पर मालूम नहीं कहां हैं? उन्होंने अपने शिष्यों को सुन्दर श्लोक कंठस्थ कराकर जंगल में गायन करने को भेजा। शिष्यों ने भगवान की सुंदरता का वर्णन करने वाले श्लोक को गाया- "वर्हापीडं नटवर वपुः कर्णयोः कर्णिकारं।" इसे सुनकर शुकदेवजी की समाधि खुली। सोचने लगे वह ब्रहम इतना सुंदर है, पर जो सुंदर है उसके गुण भी सुंदर हो इसकी क्या गारंटी? फिर समाधि लग गई तो शिष्यों ने भगवान की दयालुता का वर्णन करने वाला दूसरा श्लोक गाया- "अहो वकीयं स्तन कालकूटं जिघांसया पाय यदप्य साध्वी।" यह सुनकर वह भावविभोर हो गये और दौड़ कर व्यासजी के पास आये। कहा पिताजी हमको श्रीमद्भागवत पढ़ाओ। इसके बाद शुकदेवजी ने काम व क्रोध पर विजय प्राप्त कर श्रीमद्भागवत का अध्ययन किया। जब राजा परीक्षित को तक्षक नाग के डसने से मृत्यु का श्राप हुया तो शुकदेवजी ने श्रीमद्भागवत की कथा सुना कर उनका उद्धार कराया। तबसे लेकर अबतक यह कथा आत्मनोमोक्षार्थाय जगतहिताय होती चली आ रही है।
कथा में मुख्य रूप से पंडित आशीष तिवारी, पंडित प्रियव्रत शुक्ल, जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन अखिलेश तिवारी, जिला पंचायत सदस्य अमरनाथ चौहान, पूर्व जिला पंचायत सदस्य आशीष चौधरी, रविकांत दूबे, प्रधान सोनू यादव, एकलव्य सिंह, राधेमोहन सिंह, सुरेन्द्र सिंह, श्वेता सिंह, अखंड प्रताप सिंह, ओमप्रकाश सिंह, रणधीर सिंह, पूजा सिंह, महावीर सिंह, शिव सिंह, उदय प्रताप सिंह, रजनी सिंह, वीरेंद्र सिंह, तारकेश्वर सिंह, सुभाष सिंह, गोल्डी सिंह, समरबहादुर सिंह, अंजली सिंह सहित सैकड़ों श्रोतागण मौजूद रहे।
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